रविवार, 23 सितंबर 2018

निर्झर

वो गिराता है खुद को रोज उस ऊँचाई से,
बिखेरने को खुद को टुकड़ो में हजार,
अमृत बिंदु सा श्वेत लगता है दुग्ध धार,
दिखता है निर्झर इन वादियों में कई बार।

यूँ तो टूट कर बिखरने की कला है ये खास,
ऊंचाई से गिर कर भी सम्मान होता न हास,
जब इंद्रधनुष के ताज से सजता दिखता बेहद खास,
सिखाने को अभी बहुत कुछ ऐ निर्झर तेरे पास।
--सुमन्त शेखर