सोमवार, 3 जनवरी 2022

नया सफर

वक्त का कारवां बढ़ चला,
मुसाफिरों को मंजिल पर ले जाने को,
मैं भी था मंजिल का मुसाफिर,
सवार हो गया मैं मंजिल पर जाने को।

नम थी पलकें ना जाने क्यों,
कुछ साथी थे शायद छूट जाने को,
मिला वो अपनापन प्यार मुझे,
सिखाता रहा जो नया आजमाने को।

वो कहते क्यूं घबराते हो नई चीजों से,
पीछे खड़ा हूँ मैं सदा गलतियां सुधारने को,
तुम इक कोशिश तो करो,
जिंदगी तैयार है तुम्हे सब सिखाने को।

भले ही आपस मे मिले ना हो कई,
सब जिद्दी है समस्याओं को सुलझाने को,
सब एक से बढकर एक धुरंदर,
जीते हैं हमेशा जीत के आने को।

साथ हमारा बस यहीं तक,
अब नया मोड़ है आने को,
संभव है आगे चल कर के फिर,
कोई मोड़ बनी हो मिल जाने को।

चल पड़ा हूँ मैं भी यारो,
नए दोस्त बनाने को,
नया सफर है नई डगर है,
तैयार कलम है नई कहानी लिखने को।
--सुमन्त शेखर