मेरे शहर में रात होने को था,
अंधकार भी पैर पसारने को था,
इंडिगो विमान ने तब ही गति को पकड़ा था
फलक से ऊपर उड़ान भरना शुरू किया था,
क्षितिज को निहारने में आनंद आने लगा था,
विमान के एक ओर विकराल अंधकार था,
तो दूसरी ओर सूरज का प्रकाश था,
काले बादलों के ऊपर सूरज विद्यमान था।
ऊपर से नीला पिला नारंगी लाल था,
नीचे काले बदलो का फैला साम्राज्य था,
भीतर विमान के एल-इ-डी का प्रकाश था,
दूसरी तरफ अब घना अंधकार था।
परिचारिकाओं का चाय पानी भी व्यापार था,
शुरू में ही बताया ये उनका ही विचार था,
हमने भी ऊपर डैशबोर्ड का बटन दबाया था,
कुछ ग्लास पानी का बारबार मंगवाया था।
धीरे धीरे अंधकार हो रहा व्याप्त था,
अब क्षितिज पर हो रहा रात था,
मेरी आंखों पर नींद सवार था,
मुझे आया सोने का विचार था।
--सुमन्त शेखर