इन्तेजार के ये पल,
कुछ बीत गए, कुछ बीतेंगे।
मंजिल हमको रोक रही,
पर मंजिल तक हम पहुचेंगे।
है रात हो चली, शाम ढल गयी,
मेरी भी है वाट लग गयी।
नींद ने मुझसे ठानी है,
रात भर की जगवारी है।
मैं यहां जगु, सब वहां जगे,
इन्तेजार में रात ये काली है।
पहले पत्नी थी इसमे उलझी,
अब आयी मेरी बारी है।
काठमांडू की पहली यात्रा,
अबतक सबसे भारी है।
पशुपतिनाथ के दर्शन की इच्छा,
अब भी मेरे मन मे बाकी है।
--सुमन्त शेखर।