बड़ी खामोश रहती थी राते
ठंडी ने थी पाव पसारे
सब आलस में चादर ताने
हवाए पूरी शांत थी
पूस वाली वात थी
फिर मौसम में परिवर्तन आया
हवाओं ने भी वेग अपनाया
ऋतुराज ने कदम बढ़ाया
पेड़ो ने नव पल्लव पाया
अमिया ने भी खुब लुभाया
नव फुलो से बाग भरा है
खग कलरव का सारा समा है
ठंडी गरमी एक सामान
धूल का नहीं है नाम-निशान
माँ शारदा को किया नमन
शिव को भी फिर किया प्रसन्न
अब आएगी होली की बारी
रंग भर सब खेलें पिचकारी
बसंत मनाये दुनिया सारी।