सोमवार, 9 नवंबर 2015

घर

सब को घर जाते देख
मेरे मन भी उठा उद्वेग
मन जाना चाह रहा था घर
पिताश्री का आया आदेश
रुक जाओ उधर
मत आओ इधर
हम स्वयं मिलने को आएंगे
सब लोगो को लाएंगे
वहा ज्यादा है जरुरत तुम्हारा
करो कर्तव्य का वहन तुम सारा
नियत समय पर तुम्हे आना होगा
तबतक कर्म निभाना होगा
-- सुमन्त शेखर

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