मंगलवार, 15 मार्च 2016

बारिश

कबसे जमी थी धुल,
आज धुल गयी,
मेरे शहर में भी आज,
बारिश हो गयी।
काले होते हुए पत्तो में भी,
आज हरियाली छा गयी,
गर्मी के सितम से थे सब परेशा,
लो अब ठंडी हो गयी,
पसीना से जो गिला हुआ था,
आज राहत मिल गयी,
कब की प्यासी थी जमी,
आज इसकी प्यास बुझ गयी।
-- सुमन्त शेखर।

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