माना के मेरे शहर में हड़ताल थी,
शहर में सारी बसें बंद पड़ी थी,
सोचते थे सड़क खाली होगी शायद,
गाड़ियों की लंबी कतार दिखी आज,
मजाल है कि गाड़ी आगे बढ़ जाये,
जैसे अंगद का पैर है, वही जम जाये,
बारिश का कहर ऊपर से और बरपा,
सड़को पर कोई तालाब जन्मा जैसा,
मेरे ऑफिस के बाहर कोई चक्रव्यूह बना,
जिससे भीतर आने का मार्ग अवरुद्ध हुआ,
दस मिनटो का सफर कई घंटों में तब्दील हुआ,
कुछ देर के लिए ही, पूरा शहर स्थिर हुआ,
बस बिन पैसेंजर बदहाल हुआ,
बस बिन सड़को पर ट्रैफिक जाम हुआ,
सड़को पर पिकनिक सा माहौल हुआ,
विशुद्ध सेल्फी और व्हट्सएप फिर दौर चला।
-- सुमन्त शेखर।
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