सोमवार, 22 मई 2017

नींद

रातभर मैं करवटें बदलता रहा,
रातभर मैं किश्तों में सोता रहा,
नींद तो आंखों को आती थी,
पर रह रह कर कही चली जाती,
रात भर मौसम को कोसते रहे,
रह रह कर पानी भी पीते रहे,
और ये कमबख्त नींद भी मुझे,
ना जाने कौन कौन से ख्वाब दिखाती रही,
कभी सपने में मुझे हँसाती, कभी रुलाती,
बार बार मुझे भगाती रहती,
मैं फिर उठता, पानी पीता और,
अगले सपने में भागने को तैयार रहता।
--सुमन्त शेखर

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