दर दर भटक रहा हूँ
कुछ पाने की आस में
प्यास लगी है जोरो की
कुआँ है पास में
बंधी है बाल्टी
रस्सी के छोरो में
घुमती है चकरी
बाल्टी के डोरो में
कोशिस की हमने भी
अपनी तकनीको से
की आ जाये पानी
डोरे की बाल्टी से
छलकती है बाल्टी
पानी को छुने में
भरती है पानी
बाल्टी के पेंदे में
खींचता हु डोरा
अपने बाजु के जोरो से
बाहर आता है पानी
बाल्टी के भरने से |
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