रविवार, 2 नवंबर 2014

धरती को तु हरा बना

ज्यों ज्यों पारा ऊपर चढ़ता 
हर जीव जगत का कष्ट है पाता 
पाने को निजाद तपन से 
हर कोई है पंखे झलता 

कोई बारिश की बाट जोहता 
कोई ठंडे पेय बनाता 
गर्मी के इस मौसम में यारो 
पानी भी है बहुत छकाता 

भूमिगत जल हो या 
हिम ध्रुव पटल पर 
सबका स्तर घटता जाता 
ज्यों ज्यों परा चढ़ता जाता 

नयी नयी तकनीको से हम 
पर्यावरण को दूषित करते 
जीवन के प्राचीन रूप को 
बड़ी सरलता से हम तजते 

है काल चक्र अब बदल रहा 
ऐ इन्सान अब संभल जरा 
हर रोज तु इक पेड़ लगा 
धरती को तु हरा बना 

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