शुक्रवार, 20 मार्च 2015

मेहनत रंग लाई

मेरे एक मित्र ने 
अपनी पत्नी को घर जाने के लिए 
भरी दोपहरी में लाइन लगकर 
रेल का टिकट बुक कराया
जाने क्या हुआ उनकी पत्नी को 
घर ना जाने की इच्छा बताया
लगा जैसे कोई पुराना खत 
आज उनके हाथ है आया 
मित्र हमारा 
परेशान बेचारा 
टिकट मिला था 
वेटिंग वाला 
आनन फानन में 
उस ने सारा जोर लगाया
रेलवे से है भिड़ा बेचारा 
तत्काल का टिकट है निकला
जैसे तैसे करके उसने 
पत्नी को है अभी मनाया
जाएगी अब पत्नी घर को 
बड़ा सुकुन है उसने पाया। 

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