लगल बा जाल मुसहरी,
झगवा से बचावे ला,
पोखरा के इ ह गंदा पानी,
रोज आऊ करियाए ला,
लोग तबहुँ ना कुच्छो सोचे,
ओकरे में कूड़ा डाले ला,
शहर में पोखरा घटे लगल बा,
सरकार कबहू ना सोचे ला,
करखनवो के गंदा पानी,
सब पोखरे मे डाले ला,
साफ करेला केहू ना,
खाली भाषण बाजी करेला,
उकरे में से फिर एग्गो दुग्गो,
सफाई के जिम्मा लेवेला,
गिन्नल चुन्नल काम करेला,
फ़ोटोवा खूब खिचावे ला,
उकरे से फिर तन्नी मन्नी,
जान पोखरा में आवेला।
--सुमन्त शेखर।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017
शहर के पोखरा v2
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