बरसे रे बदरिया रंग भर के,
पिचकारी से जीया भर के,
कहीं रंग उड़े और गुलाल चले,
कहीं फूलों से भी होली मने,
तन मन सब है यहाँ रंग से सने,
बच्चे भी है यहां खूब रमे,
चेहरे सब के रंगीन दिखे,
होली में सब रीझे दिखे,
प्यार मोहब्बत खूब चले,
भाईचारा का संदेश मिले,
घृणा द्वेष का भाव मिटे,
जनमन में प्रेम का रंग बसे।
--सुमन्त शेखर।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
शुक्रवार, 2 मार्च 2018
बरसे रे बदरिया
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