बुधवार, 8 अगस्त 2018

जीना आ गया

बादलों को बरसना आ गया,
मौसम को बदलना आ गया।
बेवक्त की तेज आँधियों में,
पेड़ो को झुकना आ गया।।

ईंट पर ईंट ही रखी थी,
की आज बंगला बन गया।
और बून्द बून्द कर के देखो,
फिर से ये घड़ा भर गया।।

सागर की ऊंची तेज लहरों को,
वापस पानी मे मिलना आ गया।
इस बदलते हुए दौर में,
फिर से मुझे जीना आ गया।।
--सुमन्त शेखर।

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