सोमवार, 2 जून 2014

बारिश में बस का सफर

आज शाम की बारिश में 
बस का सफर अनोखा था 
कांच टूटी थी खिड़की की 
हर जोड़ में रिसाव था 

जैसे जैसे फिर दिन ढला 
बारिश का भी चादर फैला 
बस जैसे जैसे गतिमान हुआ 
खिड़की से पानी दाखिल हुआ 

हर मुसाफिर अब खिड़की से दूर हुआ 
जब पानी से तन सबका गिला हुआ 
खड़े हुए सब बस के भीतर 
जब जोड़ो से भी रिसाव हुआ 

बारिश ने फिर जोर लगाया 
पानी बस के भीतर आया 
बस में  दरिया का निर्माण हुआ  
हर मुसाफिर का तन गिला हुआ 

रास्ते में थे खड्डे अनेक 
बारिश में दिखते सब एक 
चालक बस को झटके देता 
पानी के छींटे ऊँचे उडाता 

जैसे तैसे सफर था काटा 
तब जाके मंजिल पर आया 
अब भी घर था दूर हमारा 
हमने भी तब छतरी डाला 

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