देख रहा हुँ मैं बादलों का चमकना
दुर कही हो रहा है उनका बरसना
रात के इस अँधेरे में काले अंधेरे में
बादलों के मशालों का जलना
पलक झपकते ही फिर कहीं खो जाना
अंधेरे में युं ही चमकते रहना
हमको यह बतलाता है
स्थाई नहीं है कुछ भी यहाँ
फिर तु क्यों सभी से लड़ता है
अपने अहंकार की खातिर
क्यों मित्रों को खोता है
चलो छोड़े हम अपना स्वार्थ
मिलकर बनाएं हम सुखद संसार।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
मंगलवार, 18 अगस्त 2015
सुखद संसार
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