शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

बसंत मनाये दुनिया सारी

बड़ी खामोश रहती थी राते 
ठंडी ने थी पाव पसारे 
सब आलस में चादर ताने 

हवाए पूरी शांत थी 
पूस वाली वात थी 

फिर मौसम में परिवर्तन आया 
हवाओं ने भी वेग अपनाया 
ऋतुराज ने कदम बढ़ाया 
पेड़ो ने नव पल्लव पाया 
अमिया ने भी खुब लुभाया 
नव फुलो से बाग भरा है 
खग कलरव का सारा समा है 

ठंडी गरमी एक सामान 
धूल का नहीं है नाम-निशान 

माँ शारदा को किया नमन  
शिव को भी फिर किया प्रसन्न 
अब आएगी होली की बारी 
रंग भर सब खेलें पिचकारी 
बसंत मनाये दुनिया सारी। 

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