शनिवार, 9 मई 2015

भुख

उस रात ऑफिस में देर हो गयी थी , खाना मै घर के पास खाता था , वहाँ पहुचने में 45 मिनट बाकी थे और तब मेरा भूख से बुरा हाल हो रहा था। तब की ये रचना है 

भुख लगल है 
भुख लगल है 
पेट में चुहा 
कुद रहल है 
खाने को जी मचल रहल है 
भुख से पेट सिकुड़ रहल है 
खाने में है देर अभी 
मन बस में खाना ढूंढ रहल है ।

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