प्रातः जगने से लेकर
रोज रात को सोने तक
दफ्तर के कामों से लेकर
घर में चूल्हा जलने तक
बस में धक्के खाने से
रोज देर से आने तक
सही फैसला लेने पर
गलत कुछ हो जाने तक
इंटरनेट पर मेल चेकिंग से
टीवी सीरियल देखने तक
जीवन के उत्थान पतन से
थक कर चूर होने तक
अक्सर सोचा करता हुँ मैं
फुर्सत के छण पाने के बाद
क्या पाया क्या खो गया है
क्या सोचा क्या हो गया है
हाथों में कंचे पतंग से
धरती आकाश के मापने तक
बचपन के खेलों से लेकर
दफ्तर के मुश्किल कामों तक
गावों की तंग गलिओं से लेकर
अन्नंत आकाश के छोरो तक
विद्यालय के प्रांगण से लेकर
दोस्तों संग मौज़ उड़ाने तक
दुर देश में रहने को लेकर
घर का खाना खाने तक
जीवन के हर रंग में रंगकर
हर सपने पुरा करने तक
सबने साहस खुब दिखाया
मिलकर है इतिहास बनाया
जो चाहा था सबकुछ पाया
जैसा चाहा वैसा पाया
फिर नया सबेरा आने को है
अनुभव नये दिलाने को है
जीवन के इस रंगमंच पर देखो
रोमांच नये कराने को है
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