मंगलवार, 11 मार्च 2014

जीवन का रंगमंच

प्रातः जगने से लेकर 
रोज रात को सोने तक 
दफ्तर के कामों से लेकर 
घर में चूल्हा जलने तक 

बस में धक्के खाने से 
रोज देर से आने तक 
सही फैसला लेने पर 
गलत कुछ हो जाने तक 

इंटरनेट पर मेल चेकिंग से 
टीवी सीरियल देखने तक 
जीवन के उत्थान पतन से 
थक कर चूर होने तक 

अक्सर सोचा करता हुँ मैं 
फुर्सत के छण पाने के बाद 
क्या पाया क्या खो गया है 
क्या सोचा क्या हो गया है 

हाथों में कंचे पतंग से 
धरती आकाश के मापने तक 
बचपन के खेलों से लेकर 
दफ्तर के मुश्किल कामों तक 

गावों की तंग गलिओं से लेकर 
अन्नंत आकाश के छोरो तक
विद्यालय के प्रांगण से लेकर  
दोस्तों संग मौज़ उड़ाने तक 

दुर देश में रहने को लेकर 
घर का खाना खाने तक 
जीवन के हर रंग में रंगकर 
हर सपने पुरा करने तक 

सबने साहस खुब दिखाया 
मिलकर है इतिहास बनाया 
जो चाहा था सबकुछ पाया 
जैसा चाहा वैसा पाया 

फिर नया सबेरा आने को है 
अनुभव नये दिलाने को है 
जीवन के इस रंगमंच पर देखो 
रोमांच नये कराने को है 

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