ग्रीष्म में तपी धरती
जब उगलती आग
झड़ जाते है पत्ते सारे
सुनी रहती डाल
स्वेद से तन गीला होता
और शुष्क होते प्राण
सब अम्बर से है आस लगाते
अब जल्दी से बरसात करा दे
लो अब अम्बर गहराता है
घनघोर घटाये लाता है
नभ से फिर बरसाता है
जीवन की प्यास बुझाता है
नव जीवन तब इठलाती है
धरती दुल्हन सी सज जाती है
खग मोर पपीहा गाते है
जीवन का राग सुनाते है
बारिश की छोटी बूंदो से
जब धरा का संगम होता है
नव जीवन का अंकुर जगत में
अंगड़ाई ले जग जाता है
गर्मी की अलसाई रातो में
अब नया सबेरा होता है
नव जीवन के रंगो से अब
अम्बर बारिश करवाता है
--सुमन्त शेखर
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