रविवार, 14 दिसंबर 2014

आज और कल

कि जीता है हर इंसान आज में 
फिर भी सोच रहा है कल की
कितना भी कच्चा हो ​जग में
पर बिसात बिछाता है वो पक्की 

जुझता है आज से
चाहें कितना भी हो मुश्किल
चाह यही है दिल में
कि हर ख़्वाब हो जाये मुमकिन

लिए ख़्वाब इन आँखों में
हमने भी यही चाहा है
कितनी भी मुश्किल हो आज
कल का दिन हमारा है

यूँ तो कल नहीं आता है
इक मंजिल सा दे जाता है
मंजिल को पाने की जिद में
हर इंसान आज को जीता है

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