रविवार, 21 दिसंबर 2014

तुम

अब कुछ अर्ज भी कर दो यार 
कान तरस गए सुनने को 
कब से खामोश बैठे हो 
क्या तुम सच में गुंगे हो 

तुम्हे ना मालूम हो लेकिन 
सुरों के सरताज हो तुम 
तुम सितार के तार हो 
वीणा की मधुर तान हो तुम 

सुगम संगीत का राग हो तुम
पपीहे की आवाज हो तुम  
पानी का कलकल गीत हो तुम
एक मन्द मधुर मुस्कान हो तुम 

खुद को अब पहचानो यार 
करो दुनिया से नजरे चार 
इतना मत शरमाओ यार 
अब तो अर्ज कर ही दो यार 

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