सोमवार, 15 दिसंबर 2014

मझधार

आज कितना चुप हुँ मै 
कुछ बोलने को मन नहीं कर रहा 
फिर आपको देखकर 
चुप रहा नहीं जाता। 

ना जाने ये कैसी 
अजीब सी उलझन है 
ना निगलने को बनता है 
ना उगला ही जाता है। 

बीच मझधार के से 
फंस गया हु मै 
कोई तो हाथ बढ़ा दो यार 
देखो कितना उलझ गया हुँ मै। 

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